Ticker

6/recent/ticker-posts

प्रबंधन की हीला हवाली के आगे, दिल्ली से आई टीम भी लाचार

मोहम्मद सईद

शहडोल 29 नवंबर। जिले में एसईसीएल की अमलाई ओपन कास्ट खदान में बीते अक्टूबर कार्य के दौरान अचानक मिट्टी धंसक जाने से एक डोजर मशीन और टीपर मशीन गहरे पानी में समा गई थी। इस हादसे में टीपर ऑपरेटर अनिल कुशवाहा भी गहरे पानी में समा गया था जिसका अभी तक कुछ पता नहीं लग सका है। हादसे के बाद कंपनी पर लापरवाही का आरोप भी लगा था। मशीन और ऑपरेटर को पानी से निकालने के लिए स्थानीय स्तर के प्रयासों के साथ ही एनडीआरएफ की टीम भी बुलाई गई थी, लेकिन वह भी इसमें विफल साबित हुई थी। अब अमलाई ओपन कास्ट खदान में जमा पानी को बाहर निकालने के लिए दिल्ली से एक सप्ताह पूर्व विशेषज्ञों की एक टीम छह हाई-कैपेसिटी पंपों के साथ आई है। लेकिन बताया जा रहा है, कि विशेषज्ञों की यह टीम सप्ताह भर में अपना काम शुरू नहीं कर पाई है। इसके पीछे का कारण एसईसीएल और ठेका कंपनी आरकेटीसी द्वारा पंप लगाने के लिए समतल सतह तैयार करके टीम को नहीं दिया जाना बताया जा रहा है। इस देरी से सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है, कि एसईसीएल और ठेका कंपनी आरकेटीसी इस मामले में कितनी गंभीर है। दिल्ली की विशेषज्ञ टीम के मौजूद होने के बावजूद पानी निकालने का काम शुरू नहीं हो पाना कई तरह के सवालों को जन्म दे रहा है। क्षेत्र के वरिष्ठ पत्रकार मुरलीधर त्रिपाठी बताते हैं, कि खदान में जहां हादसा हुआ वहां बैक फिलिंग महीनों से लंबित थी और दलदली ज़मीन पर कार्य चल रहा था। बैक फिलिंग न होने से सतह कमजोर, दलदली और अस्थिर हो गई थी। विशेषज्ञ इसे प्राकृतिक दुर्घटना नहीं, बल्कि प्रबंधन की बड़ी लापरवाही बता रहे हैं।

कोयलांचल के वरिष्ठ पत्रकार मुरलीधर त्रिपाठी यह भी बताते हैं, कि डीजीएमएस के कई सुरक्षा नियम खुले आम तोड़े गए हैं। पत्रकार श्री त्रिपाठी बताते हैं कि जिन क्षेत्रों को असुरक्षित घोषित किया गया था, वहां किसी भी प्रकार की खनन गतिविधि पर  कोल माइंस रेगुलेशन एक्ट 2017 के तहत सख्त रोक है। फिर भी सीएमआर 106(2) का उल्लंघन, सीएमआर 170(क) का अनुपालन नहीं किया गया, सुरक्षा निरीक्षण की कमी, और खतरे के मूल्यांकन की औपचारिकता जैसी गंभीर विफलताओं ने दुर्घटना की नींव पहले ही डाल दी। पत्रकार श्री त्रिपाठी का यह भी कहना है कि ब्लास्टिंग से होने वाले कंपन का आधिकारिक मापन सिर्फ खदान के सुरक्षित हिस्सों में किया जाता है, जहाँ प्रभाव कम होता है। वास्तविक झटका पास के गांवों, स्कूलों और आबादी वाले इलाकों में महसूस होता है, पर वहां कोई रिकॉर्डिंग नहीं होती।

उड़ती धूल ने बढ़ाई और परेशानी

इस क्षेत्र के ग्रामीणों का दर्द यह है, कि यहां से रोजाना सैकड़ों ट्रक कोयला परिवहन करते हैं और अधिकांश ट्रक कोयला को बिना कवर करके निकलते हैं। ग्रामीणों का कहना है, कि इसके कारण सड़क पर कोयले की मोटी परतें जम जातीं है और उड़ती धूल से समीपवर्ती गांवों में श्वसन संबंधी दिक्कतों से लोग परेशान हैं। स्थानीय ग्रामीणों का आरोप हैं कि कॉलरी प्रबंधन का स्वच्छता अभियान सिर्फ कागजों में ही  दौड़ता है।

Post a Comment

0 Comments