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सक्षम और समर्थ देश के निर्माण के लिए नई जीएसटी दरें

 हिमाद्री सिंह

नईदिल्ली 7 अक्टूबर।

मैं अर्थशास्त्री नहीं हूँ और वित्तीय ज्ञान भी उतना ही है जितना सामान्य व्यक्ति को होता है। मेरे स्वर्गीय पिता भारत सरकार के वित्त राज्य मंत्री रहे हैं। आर्थिक सुधारों के उस दौर में मैं बहुत छोटी थी, इसलिए मुझे विरासत में अर्थशास्त्र का ज्ञान तो नहीं मिला, लेकिन उदारीकरण और वैश्वीकरण के उस ज़माने के किस्से ज़रूर सुने हैं। वर्ष 2014 में मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आर्थिक सुधारों की दिशा में जो कदम बढ़ाए गए, उनमें सबसे बड़ी चुनौती थी विभिन्न प्रकार के करों में एकरूपता लाना। 1 जुलाई 2017 को देश को अप्रत्यक्ष कर सुधार के नए स्वरूप से रूबरू कराया गया अर्थात जीएसटी के रूप में वस्तु एवं सेवा कर के समेकित रूप को लागू किया गया। उस समय तक देश में वैट, सर्विस टैक्स, सेल्स टैक्स, चुंगी जैसे 17 अलग-अलग कर प्रचलित थे। इनका अंकगणित समझना न तो व्यापारियों को आसान था, ना ही उपभोक्ताओं को। जीएसटी लागू होने के बाद इस पर संसद के भीतर और बाहर कई बहसें हुईं, लेकिन विपक्ष के तर्कों के बावजूद इसे पूरे देश में समान रूप से स्वीकार किया गया। सभी राज्यों के प्रतिनिधित्व वाली जीएसटी परिषद का गठन किया गया। जीएसटी से प्राप्त कर का आधा हिस्सा केंद्र और आधा संबंधित राज्य सरकारों को देने पर सहमति बनी। दरें लगभग वही रखी गईं जो उपभोक्ता को विभिन्न करों के बाद पहले देनी पड़ती थीं।

कराधान सरल हुआ

इस समेकित कर प्रणाली से न केवल कराधान सरल हुआ बल्कि राजस्व चोरी में रिकॉर्ड कमी आई। जीएसटी से केंद्र और राज्य सरकारों को बहुत बड़ा राजस्व प्राप्त हुआ और देश की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई। 7 प्रतिशत से अधिक की विकास दर के साथ भारत दुनिया की चौथी अर्थव्यवस्था बना और अब तीसरी बनने की राह पर है। प्रधानमंत्री ने इस साल देश को पाँच ट्रिलियन इकॉनमी तक ले जाने का लक्ष्य रखा है। स्वतंत्रता दिवस पर अपने उद्बोधन में प्रधानमंत्री जी ने जीएसटी और कर प्रणाली में सुधार की घोषणा की थी। उसी कड़ी में वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने जीएसटी परिषद की 56वीं बैठक में दरों में संशोधन की घोषणा की। सरकार के अनुसार वस्तुओं और सेवाओं के लिए 5 प्रतिशत और 18 प्रतिशत टैक्स स्लैब रखे गए हैं, जबकि पान मसाला और सिगरेट जैसे उत्पादों पर यह दर 40 प्रतिशत तय की गई है। केंद्र सरकार राज्यों की वित्तीय स्थिति का भी ध्यान रख रही है ताकि उन्हें राजस्व हिस्सेदारी में कमी का नुकसान न उठाना पड़े। कैश फ्लो तेज होने से उत्पादन बढ़ने की उम्मीद है। मोदी सरकार देशहित को स्पष्ट और निडर रूप से आगे बढ़ा रही है। किसी भी विदेशी दबाव का यहाँ स्थान नहीं है। सरकार आर्थिक संप्रभुता की रक्षा करते हुए ‘मेक इन इंडिया’ पर ज़ोर दे रही है। यह केवल नारा नहीं बल्कि भारतीय स्वाभिमान का प्रतीक है।

क्रांतिकारी कदम का उत्साह देश देख रहा 

भारत के जीएसटी सुधार के इस क्रांतिकारी कदम का उत्साह पूरा देश देख रहा है। त्योहारों में बाजारों में रौनक है। स्वतंत्रता के बाद अप्रत्यक्ष करों में इस तरह की सौगात अभूतपूर्व है। हम सक्षम, समर्थ और मजबूत अर्थव्यवस्था वाले भारत के निर्माण के साक्षी बन रहे हैं। जनसंख्या के दबाव को उत्पादन से जोड़ने और भारत को निर्माण का अग्रणी राष्ट्र बनाने के लिए ये टैक्स सुधार मील का पत्थर साबित होंगे।

(लेखिका भाजपा से लोकसभा की सदस्य हैं और यह उनके निजी विचार हैं।)





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